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जगत के पालनहार इस जगह भूख से हो जाते हैं निढाल, कभी भी बंद नहीं होता मंदिर

-“थिरूवरप्पु श्रीकृष्ण मंदिर” खुला रहता है 365 दिन

माखन के प्रति कृष्ण की दीवानगी को आप हम सभी बखूबी रूप से जानते हैं। क्या आपको भूखे श्रीकृष्ण की लीला के बारे में पता है, जिसमें वह हमेशा खाने के लिए आतुर रहते हैं। जी हां, आपने सही सुना। ऐसी ही एक भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति विराजमान है केरल के कोट्टायम जिले में। लगभग डेढ़ हजार वर्ष पुराना यह मंदिर थिरूवरप्पु में स्थित है। मान्यता है कि ‘थिरूवरप्पु श्रीकृष्ण मंदिर’ में भगवान श्रीकृष्ण हमेशा भूख से व्याकुल रहते हैं और यही वजह है कि यह मंदिर साल के 365 दिन खुला रहता है।

 

माखनचोर के लिए कुल्हाड़ी से तोड़ा जाता है दरवाजा

 

इस मंदिर की एक और खासियत की बात करें तो यहां के पुजारी को दरवाजा खोलने के लिए चाबी के साथ एक कुल्हाड़ी भी दी जाती है माना जाता है कि कृष्ण भूख बर्दाश्त नहीं कर सकते। ऐसे में ताला खुलने पर 2 मिनट की देर भी पुजारी को कुल्हाड़ी से दरवाजा तोड़ने की अनुमति देता है। यह अनोखी परंपरा पिछली कई पीढ़ियों से चली आ रही है। मंदिर के द्वार बंद होने का समय केवल 2 मिनट का है। सुबह 11:58 से दोपहर 12:00 तक मंदिर के द्वार बंद किए जाते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि यहां विराजमान भगवान भूख से निढाल हो जाते हैं।

 

कंस का वध करने के बाद किया था विश्राम

 

बताया जाता है कि कंस का वध करने के बाद जब श्रीकृष्ण बहुत थक गए थे और उन्हें बहुत भूख लगी थी। तभी से ऐसा माना जाता है कि यहां स्थापित मूर्ति भगवान के उसी रूप की है, जो भूख से व्याकुल रहती है।

भूख से दुबले हो जाते हैं कान्हा

 

कृष्ण की भूख की व्याकुलता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब भी उनका अभिषेक समाप्त होता है तो सबसे पहले भगवान का सिर सूख जाता है और जब तक उन्हें नैवेद्यम का भोग लगाया जाता है तब तक उनका शरीर सूख जाता है। ऐसे में नैवेद्यम भोग का क्रम दिन में 10 बार दोहराया जाता है।

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सूर्य ग्रहण पर भी खुले रहते हैं मंदिर के द्वार

 

इस मंदिर की खासियत यह है कि इसके द्वार सूर्य ग्रहण के समय भी बंद नहीं किए जाते हैं, जिससे कहीं भगवान भूख से व्याकुल न हो जाए। ऐसा माना जाता है कि एक बार ग्रहण के कारण मंदिर को बंद कर दिया गया था। परंतु जब मंदिर के द्वार को खोला गया तो पाया कि भोग न मिलने के कारण मूर्ति पतली हो गयी थी और कमर के कपड़े नीचे सरक गए थे। ज्ञात होने पर पता चला कि मंदिर के द्वार लंबे समय तक बंद रहने के कारण भगवान भूख से अधीर हो गए। उसके बाद से सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण के दौरान मंदिर के द्वार को हमेशा के लिए खोलने का फैसला लिया गया। चढ़ाए गए प्रसाद का कुछ हिस्सा धीरे-धीरे प्लेट से गायब होने लगता है, यह मान्यता है कि भगवान भूख से इस कदर व्याकुल है कि वह खुद ही प्रसाद खा जाते हैं।

 

प्रसाद ग्रहण किया बिना जाने की अनुमति नहीं

 

मंदिर में प्रसाद ग्रहण किए बिना किसी भी भक्त को जाने की अनुमति नहीं है। पुजारी जोर से पुकारते हैं ताकि वहां आने वाला कोई भी भक्त प्रसादी से वंचित न रह जाए। यह भी मान्यता है कि अगर आपने एक बार यहां का प्रसाद ग्रहण कर लिया तो जीवन में कभी भी आपको भूख के कारण परेशान नहीं होना पड़ेगा।

 

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