-डीग में श्रीकृष्ण-बलराम गो आराधन-महोत्सव में मलूकपीठाधीश्वर ने बताया जीवन का लक्ष्य
डीग। जिस मन में ईश्वर प्राप्ति की जिज्ञासा नहीं है, ऐसा व्यक्ति भले ही ऊंची जाति में पैदा हुआ हो, खूब धर्मग्रंथ पढ़े हों, खूब धन अर्जित किया हो और बड़े पद पर आसीन हो, सभी बेकार हैं। ईश्वर की प्राप्ति की जिज्ञासा जगाना ही जीवन का लक्ष्य है, इसके बिना जीवन व्यर्थ है। यह कहना है मलूकपीठाधीश्वर स्वामी राजेंद्र दास महाराज का। वे ज मंडल स्थित श्रीजड़खोर गोधाम में श्रीकृष्ण-बलराम गो आराधन-महोत्सव में श्रद्धालुओं को भागवत कथा का पान करा रहे हैं। महोत्सव में रोजाना हजारों भक्त कथा सुनने के लिए उमड़ रहे हैं। महाराज ने ईश्वर और तत्व के बारे में भी बड़े ही सहज शब्दों में विस्तार से वर्णन कर उपस्थित श्रद्धालुओं को भाव विभोर किया। आपको बता दें कि श्री कृष्ण बलराम गौ महोत्सव के उपलक्ष्य में भागवत पाठ किया जा रहा है। एक अक्टूबर तक आयोजित होने वाले इस महोत्सव में अनेक संत महात्माओं का समागम हो रहा है
प्रकाशदास महाराज ने बहाई भजनों की गंगा

महोत्सव में हजारों श्रद्धालु भी संतों के दर्शन और गो माता की सेवा के लिए प्रतिदिन इस संत समागम में शामिल हो रहे हैं। जगत कल्याण, मानव कल्याण के लिए महोत्सव के दौरान स्वामी रविंद्र दास महाराज के सानिध्य में प्रतिदिन श्रीमद्भागवत, श्रीसुरभि सहस्त्रचण्डी महायज्ञ का आयोजन किया जा रहा है। साथ ही भजन और अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजन से गो धाम की पावन भूमि पर अद्भुत आध्यात्मिक वातावरण बन रहा है। मंगलवार को आयोजित हुई भजन संध्या कार्यक्रम में परम पूज्यसंत प्रकाशदास जी महाराज ने एक से बढ़कर एक भजन प्रस्तुत किए।
डीग स्थित श्रीजड़खोर गोधाम गो संरक्षण और संवर्धन की एक अनूठी मिसाल है, एक मॉडल गो-शाला जहां गायों के रख रखाव और स्वास्थ्य के लिए विशेष प्रबंध किए गए हैं। यहां करीब 10 हजार गायों में अनेक ऐसी गाय हैं, जो बीमार और निराश्रित थीं, जिन्हें यहां आश्रय प्रदान कर नया जीवनदान दिया गया है। साथ ही यहां देसी गायों की नस्लों का संवर्धन भी किया जा रहा है। बुधवार को सायंकालीन भजन संध्या में परम रसिक श्रीमानसदास महाराज भजन प्रस्तुत करेंगे।
तम्बाकू खाने वाले को गो मांस खाने के बराबर लगता है पाप
कथा में स्वामी राजेन्द्र दास महाराज ने कहा कि जो वस्तु भगवान को विस्मृति करा देती है, वह व्यसन है। व्यसन करने वाला कभी ध्यान धारणा नहीं कर सकता। व्यसन मनुष्य जीवन की बर्बादी का बड़ा कारण है।
नशा करके ध्यान करने या माला फेरने का कोई मतलब नहीं। तम्बाकू खाने वाले को गो मांस खाने के बराबर पाप लगता है, क्योंकि इसकी उत्पत्ति कामधेनु के रक्त बिंदुओं से हुई है। भारत की संस्कृति में कभी इसका प्रचलन नहीं था, लेकिन विधर्मियों ने यहां आकर देश में तम्बाकू की खेती की। इसका प्रचलन शुरू किया और खाने पीने की परंपरा चलाई। इसलिए उन्होंने समाज के लोगों से नशे से दूर रहने का आह्वान किया।