
गरीब को दो वक्त की रोटी मिल जाए.. एक छत मिल जाए सर पर वही काफी होता है..
बीजेपी की हार का सबसे बड़ा फैक्टर स्थानीय मुद्दों को तरजीह नहीं देना- नेल्सन मंडेला
Patna: झारखंड विधानसभा में बीजेपी की हार का सबसे बड़ा फैक्टर स्थानीय मुद्दों को तरजीह नहीं देना---2019 झारखंड विधानसभा में भाजपा के हर एक नेताओं ने चुनावी सभाओं में राष्ट्रीय मुद्दे पर ही बात की। राम मंदिर, पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर, जम्मू कश्मीर की धारा 370 पर, तीन तलाक कानून पर|
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इन नेताओं ने कभी यह नहीं सोचा कि झारखंड में साक्षरता दर 2011 के अनुसार 66.41 है। शहरी साक्षरता दर 82. 3% है जबकि ग्रामीण साक्षरता दर 61. 8% है। झारखंड के दूसरे आखिरी आबादी को देखते हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार झारखंड की आबादी तीन करोड़, 29 लाख, 88 हजार 134 है। जिसमें अनुसूचित जाति के लोगों की संख्या टोटल आबादी का 12.1 प्रतिशत है, जबकि अनुसूचित जनजाति का 26.3 प्रतिशत है। झारखंड की टोटल आबादी का 24 परसेंट शहरों में निवास करता। यहां एक प्रश्न उठता है? भला यह जो अनुसूचित जनजाति और जाती हैं? इनका क्या लेना देना है राम मंदिर से, धारा 370 से, सुप्रीम कोर्ट से??
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इन लोगों को दो वक्त की भोजन मिल जाए, सर पर छत मिल जाए, एक सीधी साधी जिंदगी मिल जाए, जिससे उन्हें एक मानव के हैसियत से, एक इंसान के हैसियत से देखा जाए और उन्हें भी इंसान ही समझा जाय। यही इनके लिए काफी होता है। बीजेपी से पूर्ववर्ती सरकार इन्हें इंसान का दर्जा नहीं दे सके थे। जिससे 2014 में बीजेपी को जोरदार बहुमत मिली। 5 साल सत्ता में रहने के बावजूद बीजेपी ने भी इनका सम्मान नहीं किया।
अपने बड़े बड़े कामों का गुणगान करते चले गए! इस वजह से एनडीए के कई घटक दल बीजेपी का साथ छोड़ दिया। इस सब का फायदा उठाने का मौका कॉन्ग्रेस और जेबीएम को मिला। इन दोनों का साथ भी महागठबंधन के घटक दलों ने दिया। इनके नेता हमेशा आमजन के मुद्दे को उठाते रहे।
आमजन की सबसे बड़ी समस्या महंगाई,बेरोजगारी और भुखमरी है। लोग भूखे पेट मरने को मजबूर हैं। हंगर डेक्स और कौन-कौन से आंकड़े आपने देखा होंगे जिसमें लोगों को भूख से बीमारी से मर रहे है। सत्ता पक्ष पहले इन लोगों की जान तो बचा लेते हैं फिर अपने बड़े बड़े कारनामे करते हैं तो सत्ता पक्ष को आज यह दिन देखना नहीं पड़ता।