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राम और कृष्ण के भरोसे, 16 साल की सबरी ने तोड़ा 95 साल पुराना इतिहास

– बदल दिया 95 साल का इतिहास

– रामायण की नाटकीय प्रस्तुति करने वाली पहली मुस्लिम लड़की

 

किसी ने खूब कहा है जग में सुंदर है दो नाम चाहे कृष्ण कहो या राम। श्रीराम भगवान शबरी की सच्ची भक्ति, प्रेम और श्रद्धा से इस कदर प्रसन्न थे कि उन्होंने जात-पात के भेद को भुलाकर सबरी के झूठे बेरों को ग्रहण किया। कुछ ऐसी ही अनन्य भक्ति केरल की 16 साल की सबरी की भगवान कृष्ण के प्रति है। मुस्लिम होने के बावजूद उन्होंने 2 अक्टूबर को अपने दोस्तों के साथ रामायण पर आधारित संगीत नाटकीय प्रस्तुति के लिए ‘केरल कलामंडलम’ के मंच पर कदम रखते ही 95 साल के इतिहास को बदल दिया। ऐसा मुकाम हासिल करने वाली वह पहली मुस्लिम लड़की है। वह हमेशा से कृष्ण वेश धारण कर नाटकीय प्रस्तुति देने का सपना देखती आई है। जाहिर है उनकी यह शुरुआत किसी अग्नि परीक्षा से काम नहीं थी। उनके पिता निजाम जो एक फोटोग्राफर है, को जब सबरी की कथकली के प्रति रुचि के बारे में पता चला तो उन्होंने बेटी का सपना पूरा करने की ठानी। निश्चित रूप से मुस्लिम समुदाय से होने के कारण उनकी यह राह आसान नहीं होने वाली थी। कड़वे शब्दों और आलोचना के बावजूद वह अपनी बेटी की खुशी के लिए डटकर खड़े रहे।

 

2023 में कथकली की शुरुआत

कथकली के साथ सबरी की शुरुआत 2023 में हुई, जब उन्होंने इसकी प्रवेश परीक्षा और इंटरव्यू पास कर आठवीं कक्षा की छात्रा के रूप में कलामंडलम को ज्वाइन किया। उसे समय कलामंडलम में उनका प्रवेश ही अपने आप में एक कीर्तिमान था। क्योंकि इससे पहले कभी भी मुस्लिम समुदाय की किसी लड़की ने संस्थान में कथकली सीखने के लिए दाखिला नहीं लिया था।

केरल की मुस्लिम लड़की रामायण की प्रस्तुति के लिए तैयार होती। इनसेट में प्रैक्टिस के दौरान नृत्य प्रस्तुति देती सबरी।
केरल की मुस्लिम लड़की रामायण की प्रस्तुति के लिए तैयार होती। इनसेट में प्रैक्टिस के दौरान नृत्य प्रस्तुति देती सबरी।

रामायण के नाटकीय रूपांतरण से प्रभावित

उनके पिता की माने तो सबरी की संगीत नाटक के प्रस्तुति को लेकर रुचि इस कदर उफान पर थी कि अपने गांव के पास एक मंदिर में रात भर चलने वाले कथकली नृत्य प्रदर्शन देखने का वह कोई मौका नहीं चूकती थी। खास बात तो देखिए कि यह संगीत नाटकीय प्रस्तुति रामायण पर आधारित होती थी।

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परिवार ने निभाई अहम भूमिका

सबरी के पिता ने अपनी बेटी की इस जिज्ञासा को न केवल पहचाना, बल्कि उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित भी किया। शुरुआत में सबरी को उन्होंने पहले स्थानीय शिक्षक के द्वारा कथकली की शिक्षा दिलवाई फिर लगातार मेहनत और संघर्ष के दम पर कलामंडलम में दाखिला दिलवाया। इतना ही नहीं, वह अपनी पढ़ाई के साथ नृत्य की कठोर साधक के रूप में उभर कर आई। उनकी यह कहानी सिर्फ एक कलाकार की कहानी नहीं, बल्कि जुनून, संघर्ष और सपनों को सच कर दिखाने की ताकत की भी है। इस सफर में उनका परिवार आज भी सबरी के साथ मजबूती से खड़ा है। उनकी यह उपलब्धि देखकर आज हर कोई सबरी की तारीफ किए बिना नहीं रह सकता है।

 

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